कोच्चि, शिक्षा के अधिकार कानून के बावजूद स्कूल से वंचित संतान के अभिभावकों ने न्यायालय की शरण ली है। मामला केरल की एक दंपत्ति का है जिनके बीच संतान के नामकरण को लेकर विवाद हो गया था। मामला ने तब तूल पकड़ा, जब बेनाम बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र को अवांछित बताते हुए स्कूल प्रबंधन ने प्रवेश से इंकार कर दिया। इसे लेकर माता – पिता ने अलग अलग नाम सुझाया जिससे विवाद खड़ा हो गया। मामला केरल हाईकोर्ट पहुंचा जहां अदालत को बच्चे का नामकरण पुण्य बालगंगाधरन नायर करना पड़ा। कोर्ट का कहना है कि बच्चे के कल्याण के लिए नाम बेहद जरूरी है। खास बात है कि बच्चे का नाम रखने की प्रक्रिया में कोर्ट ने माता-पिता की सिफारिश भी माना ।
केरल हाईकोर्ट का कहना था कि पैरेंट्स के बीच जारी विवाद को सुलझाने में समय लगेगा और यह बच्चे के लिए ठीक नहीं है। बच्चे के नाम करण के लिए कोर्ट ने पैरेंस पैट्रिया अधिकार का इस्तेमाल किया। अदालत ने कहा कि इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय माता-पिता के अधिकार के बजाय बच्चे के कल्याण को सबसे ऊपर रखा जाता है। बेंच ने कहा कि कोर्ट को बच्चे के नाम का चुनाव करना ही होगा। नाम का चुनाव करते समय बच्चे का कल्याण, सांस्कृतिक विचार, माता-पिता के हित जैसी चीजों का ध्यान रखना होगा।
गौरतलब है कि माता द्वारा बच्चे का नाम पुण्य नायर तथा पिता द्वारा पद्म नायर नामकरण पर रजिस्ट्रार ने माता-पिता दोनों की सहमति को अनिवार्य बताया। माता से अलग हो चुके माता-पिता इस मुद्दे पर एक राय नहीं बना सके। जिस कोर्ट ने कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए बच्चे का नाम पुण्य बालगंगाधरन नायर या पुण्य बी. नायर रखने का फैसला किया।