Home छत्तीसगढ़ CG में गूंजा जय जगन्नाथ:राज्यपाल और CM ने लगाई सोने की झाड़ू

CG में गूंजा जय जगन्नाथ:राज्यपाल और CM ने लगाई सोने की झाड़ू

32
0
Spread the love

रायपुर – छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रामेन डेका और CM विष्णुदेव साय ने सोने की झाड़ू लगाई। वो महाप्रभु जगन्नाथ के लिए रास्ता साफ कर रहे थे। ओडिशा के जगन्नाथ पुरी की तरह रायपुर में भी रथयात्रा का आयोजन हो रहा है। शहर के गायत्री नगर स्थित मंदिर में VVIPs भव्य पूजा कार्यक्रम में शामिल हुए।

सोने की झाड़ू से रास्ता साफ करने की रस्म को छेरापहरा कहा जाता है। रायपुर के गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर में विधि-विधान के साथ महाप्रभु जगन्नाथ जी की रथ यात्रा निकाली गई। रथ यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व भगवान की प्रतिमाओं को मंदिर से रथ तक लाया गया और मार्ग को सोने की झाड़ू से स्वच्छ किया गया।

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सभी प्रदेशवासियों को रथ यात्रा की बधाई देते हुए कहा कि यह पर्व ओडिशा के लिए जितना बड़ा उत्सव है, उतना ही बड़ा उत्सव छत्तीसगढ़ के लिए भी है। साय ने कहा कि भगवान जगन्नाथ किसानों के रक्षक हैं। उन्हीं की कृपा से वर्षा होती है, धान की बालियों में दूध भरता है और किसानों के घरों में समृद्धि आती है। मैं भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना करता हूं कि इस वर्ष भी छत्तीसगढ़ में भरपूर फसल हो। उन्होंने कहा कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा से मेरी विनती है कि वे हम सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें और हमें शांति, समृद्धि एवं खुशहाली की ओर अग्रसर करें।

500 साल पुराने मंदिरों से भी यात्रा
राजधानी के करीब 500 साल से भी अधिक पुराने टुरी हटरी के मंदिर समेत सदरबाजार और गायत्री नगर के जगन्नाथ मंदिरों में भी रथयात्रा का आयोजन हो रहा है। पुरी की तर्ज पर ही गायत्री नगर में भी जगन्नाथ महाप्रभु का रथ दसपल्ला के जंगलों की लकड़ी से बनाया गया है। महाप्रभु के रथ के साथ बहन सुभद्रा और भाई बलदाऊ के रथ का रंग-रोगन कर सजावट की गई है।

राज्यपाल भी हुए विशेष पूजा में शामिल

टुरी हटरी का रथ बाजार की तंग गलियों से होकर गुजरता है। इसलिए इसमें स्टीयरिंग और ब्रेक भी लगाया गया है। वहीं सदर बाजार में भी करीब 200 साल से रथयात्रा निकाली जा रही है। यहां भी रथ की मरम्मत और रंग-रोगन कर सजावट की जा रही है। रथ खींचने के लिए सिर्फ नारियल की रस्सियों का प्रयोग किया जाता है।

नेत्र उत्सव मनाया गया
माना जाता है कि फिलहाल भगवान जगन्नाथ बीमार हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा को श्रद्धालुओं ने प्रभु को अधिक स्नान करा दिया था। इसलिए टुरी-हटरी, सदर बाजार और गायत्री नगर के मंदिरों में भगवान जगन्नाथ की सेवा की गई। पुजारी द्वारा प्रतिदिन सुबह-शाम भगवान को औषधीय काढ़े का भोग अर्पित किया जा रहा है। एक पखवाड़े की सेवा के बाद भगवान स्वस्थ होकर दर्शन देंगे।

शहर के इन इलाकों से होकर गुजरेंगी रथयात्रा
सदर बाजार जगन्नाथ मंदिर: रथयात्रा शदाणी चौक से होते हुए कोतवाली चौक, मालवीय रोड से जयस्तंभ चौक, शारदा चौक, एमजी रोड से गुजरते हुए पुजारी बाड़ा पहुंचती है।

गायत्री नगर जगन्नाथ मंदिर: गायत्री नगर स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर से भगवान रथ पर सवार होकर अवंती विहार रोड से खम्हारडीह थाना चौक होते हुए बीटीआई ग्राउंड जाती है।

महाप्रभु के छत्र का रंग लाल
गायत्री नगर के श्रीजगन्नाथ मंदिर से तीन रथ निकाले जाते हैं। जगन्नाथ महाप्रभु नंदीघोष रथ पर सवार होते हैं। महाप्रभु के रथ का छत्र लाल रंग है। वहीं भाई बलभद्रजी तालध्वज जबकि बहन सुभद्राजी देवदलन रथ में सवार होती हैं। बलभद्र के रथ का छत्र हरा और सुभद्रा के रथ का छत्र पीले रंग का है। तीनों रथों की ऊंचाई में 1 फीट का अंतर है। इन रथों को पुरी के दसपल्ला के जंगलों की लकड़ियों से बनाया गया है।

5 हजार साल पुराना उत्सव
कहा जाता है कि लगभग 5000 साल पहले यानी कलयुग के प्रारंभिक काल में मालव देश पर राजा इंद्रद्युम का शासन था। वह भगवान जगन्नाथ का भक्त था। एक दिन इंद्रद्युम नीलांचल पर्वत पर गया तो उसे वहां देव प्रतिमा के दर्शन नहीं हुए। निराश होकर जब वह वापस आने लगा तभी आकाशवाणी हुई कि शीघ्र ही भगवान जगन्नाथ मूर्ति के स्वरूप में पुन: धरती पर आएंगे। यह सुनकर वह खुश हुआ।

एक बार जब इंद्रद्युम पुरी के समुद्र तट पर टहल रहा था, तभी उसे समुद्र में लकड़ी के दो विशाल टुकड़े तैरते हुए दिखाई दिए। तब उसे आकाशवाणी की याद आई और उसने सोचा कि इसी लकड़ी से वह भगवान की मूर्ति बनवाएगा। तभी भगवान की आज्ञा से देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा वहां बढ़ई के रूप में आए और उन्होंने उन लकड़ियों से भगवान की मूर्ति बनाने के लिए राजा से कहा। राजा ने तुरंत हां कर दी।

तब बढ़ई रूपी विश्वकर्मा ने यह शर्त रखी कि वह मूर्ति का निर्माण एकांत में करेंगे, यदि कोई वहां आया तो वह काम अधूरा छोड़कर चले जाएंगे। राजा ने शर्त मान ली। तब विश्वकर्मा ने गुंडिचा नामक स्थान पर मूर्ति बनाने का काम शुरू किया। एक दिन भूलवश राजा बढ़ई से मिलने पहुंच गए। उन्हें देखकर विश्वकर्मा वहां से अंतर्ध्यान हो गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गईं। तभी आकाशवाणी हुई कि भगवान इसी रूप में स्थापित होना चाहते हैं। तब राजा इंद्रद्युम ने विशाल मंदिर बनवा कर तीनों मूर्तियों को वहां स्थापित कर दिया।

भगवान जगन्नाथ ने ही राजा इंद्रद्युम को दर्शन देकर कहा कि कि वे साल में एक बार अपनी जन्मभूमि अवश्य जाएंगे। स्कंदपुराण के उत्कल खंड के अनुसार, इंद्रद्युम ने आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को प्रभु को उनकी जन्मभूमि जाने की व्यवस्था की। तभी से यह परंपरा रथयात्रा के रूप में चली आ रही है।