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सचिन खिलाड़ी ने पुरुषों की गोला फेंक स्पर्धा में जीता रजत, भारत के पदकों की संख्या 21 पहुंची

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पेरिस. भारत ने बुधवार को पदकों का खाता पुरुषों की F46 गोला फेंक स्पर्धा में खोला। सचिन सरजेराव खिलाड़ी ने 16.32 मीटर के सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ रजत पदक अपने नाम किया। सचिन बस 0.06 मीटर से स्वर्ण पदक चूक गए। सचिन ने दूसरे प्रयास में ही 16.32 मीटर का थ्रो किया था। हालांकि, वह इससे ऊपर निकलन में कामयाब नहीं हो सके। कनाडा के ग्रेग स्टीवर्ट ने 16.38 मीटर के सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया। इस स्पर्धा में भारत के मोहम्मद यासेर आठवें और रोहित कुमार नौवें स्थान पर रहे।
गोला फेंक के फाइनल में सचिन का पहला प्रयास 14.72 मीटर, दूसरा प्रयास 16.32 मीटर, तीसरा प्रयास 16.15 मीटर, चौथा प्रयास 16.31 मीटर, पांचवां प्रयास 16.03 मीटर और छठा (आखिरी) प्रयास 15.95 मीटर का रहा। उन्होंने 16.32 मीटर के थ्रो के साथ एरिया रिकॉर्ड भी बनाया। यह भारत का पेरिस पैरालंपिक 2024 में 21वां पदक रहा। सचिन ने 2023 विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पुरुषों की शॉट पुट एफ46 स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था।उन्होंने 16.21 मीटर के सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ पदक अपने नाम किया था। उन्होंने 2024 विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी भाग लिया , जिसमें उन्होंने इसी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था।
यासेर का सर्वश्रेष्ठ प्रयास 14.21 मीटर का और रोहित का सर्वश्रेष्ठ प्रयास 14.10 मीटर का रहा। पैरा एथलेटिक्स स्पर्धाओं में एफ46 श्रेणी उन लोगों के लिए है जिनकी एक या दोनों भुजाओं की गतिविधि मामूली रूप से प्रभावित है या जिनके हाथ-पैर नहीं हैं। इन एथलीटों को कूल्हों और पैरों की ताकत से थ्रो करना होता है।

महाराष्ट्र के सांगली जिले के रहने वाले सचिन स्कूली दिनों में एक दुर्घटना का शिकार हो गए थे, जिससे उन्होंने कोहनी की मांसपेशियां गंवा दी। कई सर्जरी के बावजूद वह ठीक नहीं हो सके। सचिन के लिए इस मुकाम तक पहुंचना आसान नहीं रहा है। उन्हें काफी संघर्षों का भी सामना करना पड़ा है।

सचिन की जिंदगी तब खराब हो गई जब नौ साल की उम्र में साइकिल से फिसलने के कारण उसका बायां हाथ टूट गया। हाथ में काम करना बंद किया, लेकिन सचिन के हौसले बुलंद रहे। इसे ठीक होने में काफी वक्त लगा था। हालांकि, जब उनका फ्रैक्चर ठीक हुआ तो उन्हें एक अन्य बीमारी गैंगरीन से जूझना पड़ा। इससे उनका बायां हाथ चलना बंद हो गया। हालांकि, इसके बावजूद सचिन ने हार नहीं मानी और इंजीनियरिंग के लिए पढ़ाई करते समय जैवलिन थ्रो में हिस्सा लेना जारी रखा। किसी प्रतियोगिता के दौरान कंधे में चोट की वजह से उन्हें जैवलिन थ्रो से खुद को हटाकर गोला फेंक में आना पड़ा।
सचिन सांगली जिले के अटपडी तालुका के कार्गनी गांव से ताल्लुक रखते हैं, जो अनार की खेती के लिए मशहूर है। उनके परिवार के पास 18 एकड़ की जमीन थी। वह बचपन से अपने किसान पिता सरजेराव रंगनाथ खिलाड़ी से पेड़ और मिट्टी की कहानियां सुनते हुए बड़े हुए हैं। सरजेराव रंगनाथ महाराष्ट्र कृषि रत्न पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं। सचिन बताते हैं, ‘मेरे पिता को खेती का बहुत शौक था। उन्होंने अलग-अलग बीजों के बारे में अपने विचार मेरे और मेरे भाई-बहनों से साझा किए थे। उन्होंने हमें अलग-अलग खान-पान के बारे में सुझाव दिए थे।’ पुणे के एक कॉलेज से उन्होंने इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। पुणे में ही सचिन ने पहली बार एथलेटिक्स ट्रैक देखा। उन्होंने कोच अरविंद चौहान के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग लेनी शुरू की और डिस्कस और जेवलिन थ्रो में जीत हासिल की।