प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2020 के ऐतिहासिक शांति समझौते के बाद हिंसा त्यागने और शांति का मार्ग अपनाने के लिए बोडो समुदाय के लोगों की शुक्रवार को सराहना की। उन्होंने कहा कि समझौते पर हस्ताक्षर के बाद इस क्षेत्र में विकास की एक नई लहर देखी गई है और सरकार पूर्वोत्तर में स्थायी शांति लाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है।
बमों और बंदूकों से कभी परिणाम हासिल नहीं किए जा सकते
साई इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में दो दिवसीय पहले बोडोलैंड महोत्सव के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि असम के जो जंगल कभी छिपने की जगह का काम करते थे, आज युवाओं की उच्च महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का माध्यम बन रहे हैं। जो हाथ पहले बंदूकें चलाते थे, वे अब बोडोलैंड में खेलों में उत्कृष्टता हासिल कर रहे हैं। बमों और बंदूकों से कभी परिणाम हासिल नहीं किए जा सकते, बोडो समुदाय ने यह रास्ता दिखाया है। जो लोग नक्सलवाद के रास्ते पर चल रहे हैं, उन्हें बोडो मित्रों से कुछ सीखना चाहिए।
पीएम मोदी ने कहा, ‘शांति समझौते से सिर्फ आपको ही फायदा नहीं हुआ है, इससे कई और शांति समझौतों के लिए नए रास्ते खुले। अगर यह सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहता, तो दूसरे लोग मुझ पर भरोसा नहीं करते। लेकिन आपने इस समझौते को अपने जीवन में आत्मसात कर लिया। आपने नया इतिहास रच दिया है।’
असम में ही 10 हजार से ज्यादा युवा हथियार डालकर मुख्य धारा में लौटे
प्रधानमंत्री ने कहा कि शांति समझौते के सकारात्मक और उत्साहवर्धक परिणामों को देखकर उन्हें बेहद संतुष्टि महसूस होती है। सरकार पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों के बीच सीमा विवादों का सर्वसम्मत समाधान निकालने का प्रयास कर रही है। विकास का सूर्य पूर्व दिशा से उदय होगा और विकसित भारत के संकल्प को नई ऊर्जा प्रदान करेगा।
उन्होंने कहा कि समझौते की वजह से सिर्फ असम में ही 10 हजार से ज्यादा युवा हथियार डालकर मुख्य धारा में लौटे हैं और यह लोगों की कल्पना से परे था कि कार्बी आंगलांग समझौता, ब्रू-रियांग समझौता और एनएलएफटी-त्रिपुरा समझौता किसी दिन हकीकत बनेगा।
पीएम मोदी ने पारंपरिक बोडो नृत्य प्रदर्शन भी देखा
प्रधानमंत्री ने महोत्सव में बोडो समुदाय के वाद्ययंत्र सारिंदा पर हाथ आजमाया और पारंपरिक बोडो नृत्य प्रदर्शन भी देखा। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कार्यक्रम में वर्चुअली शामिल हुए। गौरतलब है कि बोडो हजारों वर्षों से असम में रहने वाले आदिवासी समुदायों में से एक हैं और वे राज्य का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय हैं।