बिलासपुर. राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ चुका एक लीज भूमि के निरस्त होने का प्रकरण और उस पर स्थगन। क्या किसी अधिकारी के तबादले का कारण बन सकता है। यह चर्चा अब बिलासपुर से दिल्ली तक वाया नागपुर हो रही है। 28 तारीख की रात बिलासपुर कमिश्नर बैच 2005 का तबादला हो गया। वे कुछ ही दिनों पूर्व बिलासपुर पदस्थ हुए थे। कहा जाता था लूप लाइन में डाला है तभी एक ऐसा प्रकरण उनके न्यायालय पहुंच जो छत्तीसगढ़ की समूची राजनीति को प्रभावित करता दिखता है।
मेरिट पर सुविधा का संतुल अपूर्णीय क्षति को देखते हुए और उनका उल्लेख करते हुए पीठासीन अधिकारी ने 27 अगस्त का तारीख देते हुए अंतरिम स्टे दिया। 27 तारीख की पेशी में सुनवाई पश्चात यह तिथि 10 सितंबर हो गई। 28 तारीख की रात तबादला हुआ नए सब 2007 के बैच वाले थे पड़ोसी जिले में चर्चित रेप कांड में फंसे थे कैट के आर्डर पर निलंबन समाप्त हुआ था। 2 घंटे में ही तबादला आदेश संशोधित हुआ अब बिलासपुर कमिश्नर की जिम्मेदारी रायपुर के कमिश्नर को अतिरिक्त परिवार के रूप में है। इसे बिलासपुर कमिश्नर कोर्ट को लूप लाइन में डालना कहें या राजधानी से संचालित करना कहें। इसके पहले भी कमिश्नर कोर्ट के साथ अजीब प्रयोग हुआ बिलासपुर के कलेक्टर को ही तबादला करके कमिश्नर बना दिया कलेक्टर साहब जब कोर्ट में बैठकर आदेश करते थे उनकी अपील कमिश्नर सुनता था। अपने ही आदेशों पर अपील न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन लगता है पर होता रहा ऐसा दो बार हुआ। अस्पताल की लीज निरस्त होने के बाद उसकी अपील ईसाई समाज के लिए विशेष मायने रखती है इसलिए जानकारों को लगता है कि 28 तारीख को हुए तबादले साधारण प्रशासनिक गतिविधि नहीं…..