Home छत्तीसगढ़ सिकलसेल एवं डायरिया से बचाव के लिए आयोजित हुई कार्यशाला

सिकलसेल एवं डायरिया से बचाव के लिए आयोजित हुई कार्यशाला

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बेहतर प्रबंधन उपचार एवं काउंसलिंग के जरिए रोकथाम के बताए गए उपाय

रायपुर. मुंगेली कलेक्टर श्री राहुल देव की अध्यक्षता में जिला कलेक्टोरेट स्थित मनियारी सभाकक्ष में सिकलसेल तथा डायरिया जांच, प्रबंधन एवं रोकथाम विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कलेक्टर श्री देव ने कहा कि आज की कार्यशाला बहुत महत्वपूर्ण है। सभी चिकित्सक इस कार्यशाला को गंभीरता से समझे और जिले में सिकलसेल एवं डायरिया के जांच, प्रबंधन एवं रोकथाम हेतु बेहतर कार्य करें। उन्होंने लोगों को डायरिया एवं सिकलसेल के बेहतर उपचार तथा बचाव संबंधी उपायों के प्रति जागरूक एवं सतर्क रहने के लिए अपील भी की। उन्होंने डायरिया से बचाव के लिए स्वच्छ पानी पीने और लक्षण दिखाई देने पर चिकित्सकीय जांच एवं परामर्श लेने के लिए कहा। वहीं जिन समुदायों में सिकलसेल की बीमारी पाई जाती है, उन समुदायों के विवाहित जोड़ों की सिकल की जांच अवश्य कराने की बात कही।

बेहतर प्रबंधन उपचार एवं काउंसलिंग के जरिए रोकथाम के बताए गए उपाय

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. देवेंद्र पैकरा ने बताया कि डायरिया से बचाव के लिए पीने का साफ पानी उपलब्ध होना बेहद जरूरी है, इसके लिए टंकियों की उचित साफ-सफाई की जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि जल जनित बीमारियों को ध्यान में रखते हुए घरों में तथा कुएं एवं जल स्रोतों की अच्छी तरह से साफ-सफाई और संक्रमण रोकने के लिए क्लोरीन टैबलेट वितरित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गांव में डायरिया की रोकथाम में प्रबंधन के लिए सभी मितानिनों एवं एएनएम को पूरी सक्रियता एवं तत्परता से कार्य करना चाहिए। मितानिनों द्वारा सभी 5 वर्ष तक के बच्चों के घरों में ओआरएस पैकेट, जिंक की गोली वितरित की जाए।

डॉ. अमर सिंह ठाकुर ने कहा कि डायरिया से रोकथाम के लिए सभी स्वास्थ्य केंद्रों में ओ.आर.एस. एवं जिंक पर्याप्त रूप से उपलब्ध कराया जाए। इसके साथ-साथ साफ सफाई, भोजन से पहले नियमित रूप से साबुन से हाथ धोने आदि गतिविधियों के बारे में आमजनों को जागरूक करें ताकि डायरिया की रोकथाम की जा सके।

कार्यशाला में सिकलसेल एनीमिया बीमारी एवं बचाव के संबंध में भी विस्तृत चर्चा की गई। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप सिहारे ने बताया कि सिकल के दो प्रकार होते हैं। पहला सिकल वाहक या ट्रेट, दूसरा सिकल धारक या एनीमिया। उन्होंने बताया कि सिकल सेल से बचाव के लिए मरीजों की पहचान, सिकल वाहक की पहचान, नवजात शिशु की जांच आदि जरूरी है। सिकलसेल विशेषज्ञ डॉ. विनोद अग्रवाल ने बताया कि जिन समुदायों में सिकलसेल की बीमारी पाई जाती है, उन समुदायों के विवाहित जोड़ों की सिकल की जांच करना और उन्हें प्रीनेटल डायग्नोसिस के लिए प्रेरित करना जरूरी है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष डॉ संजय अग्रवाल ने बताया कि जिन समुदायों में सिकल की बीमारी पाई जाती है, उनके नवजात शिशुओं की जांच कर सिकल का पता लगाया जाए और तुरंत इलाज किया जाए, इससे शिशु और बाल मृत्यु दर में भी कमी आएगी। उन्होंने बताया कि जिन समुदायों में यह बीमारी पाई जाती है उन्हें बीमारी से संबंधित पूरी जानकारी देना और सिकल से संबंधित भ्रांतियां को दूर करना जरूरी है। इस अवसर पर सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक डॉ. एम. के. राय, जिला कार्यक्रम प्रबंधक श्री गिरीश कुर्रे, जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. कमलेश खैरवार, खण्ड चिकित्सा अधिकारी, आरएचओ, निजी स्वास्थ्य केन्द्रों के चिकित्सकगण, जनप्रतिनिधिगण, विभिन्न समाजों के प्रतिनिधिगण, मीडिया प्रतिनिधिगण मौजूद रहे।