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अदालतें नहीं गुण्डों पर भरोषा- जज

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Trust the goons, not the courts - the judge
Supreme court
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नई दिल्ली, 9 दिसंबर | Nyay Pranali : न्याय प्रणाली के बजाय स्थानीय गुण्डों पर अधिक भरोसा कर रहे हैं। लोग अदालते नहीं गुण्डों पर भरोसा कर रहे हैं – जज व्यक्ति मुकदमा क्यों दायर करे, जबकि 30 साल बाद भी वह मामले के नतीजे को लेकर आश्वस्त नहीं होता।

सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश ने कहा है कि लोग अपनी शिकायतों के निपटारे के लिये न्यायप्रणाली के बजाय स्थानीय लोगों पर अधिक भरोसा कर रहे हैं।

जिसके लिये फैसलों में देरी और अनिश्चितता को जिम्मेदार ठहराया जाता है।

न्यायमूर्ति आरवी रवीन्द्रन ने रोहिणी अदालत (Nyay Pranali) परिसर में एक मध्यस्थता केन्द्र के उद्घाटन के मौके पर संबोधित करते हुए कहा था की एक व्यक्ति मुकदमा क्यों दायर करे जबकि 30 साल बाद भी वह मामले के नतीजे को लेकर आश्वस्त नहीं होता।

इस तरह कि परिस्थीतियों में शिकायती लोग गुण्डों का सहारा लेते हैं। क्योंकि वे जल्दी निपटारा कर देते है।

उन्होंने कहा कि अनिश्चितता इस मायने कि कोई भी वादी निचली अदालतों में जितने के बाद भी किसी भी मामले में हार सकता है।

वहीं निचली अदालतों में हारने के बाद ही कोई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जीत सकता है।

न्यायमूर्ति रवीन्द्रन ने दिवानी और आपराधिक मामलों के बीच असमानता पर भी चिंता जतायी थी और कहा था कि न्यायिक बिरादरी के लिये इन संबंधों में कार्य करने का समय आ गया है।

उन्होंने कहा की 58 साल पहले मुकदमें कि दीवानी और अपराधिक पक्ष का अनुपात 50-50 था जो अब 20-80 हो गया है । और वह समय दूर नहीं जब अदालतों में केवल अपराधिक मामले रह जायेंगे। जो न्यायप्रणाली से पूरी तरह विश्वास को उठाता है।

वैकल्पीक विवाद निपटारा प्रणाली (Nyay Pranali) को बढ़ावा देने कि स्थिति में वकीलों द्वारा अपनी आय कम होने कि आशंकाओं को दूर करते हुए न्यायमूर्ति रविन्द्रन ने कहा की विवादों के समाधान के लिये मध्यस्थता एक प्रभावी हथियार है, जिसमें वादी और वकील दोनों ही उत्साह जनक स्तिथि में होते हैं।

उन्होंने कहा कि वादियों के लिये विकसित देशों में मध्यस्थता लाभकारी है , क्योंकि यह समय और धन दोनों ही बचाती है. तथा सौहार्दपूर्ण तरीके से मामले का समाधान होता है। जबकि मुकदमों में प्रत्येक व्यक्ति असंतुस्ट होते हैं.

विकसित देशों में मध्यस्थता के जरिये मामलों के निपटारे कि बड़ी सफलता का जिक्र करते हुये न्यायमूर्ति ने कहा की भारत में यह दर कम है। क्योंकि लोगों के मुकद में करने कि धारणा होती है. जिसके लिये एक तरह से कोई अदालती शुल्क नहीं होना जिम्मेदार होता है।

उन्होंने कहा कि दिल्ली में 2005 से मध्यस्थता के जरिये 5000 से अधिक मामले अभी तक सुलझाये जा चुके है । रोहणी मध्यस्थता केन्द्र ने अकेले 2 फरवरी 2009 से 700 से अधिक मामलों का निपटारा किया है ।

अभी के जानकारी के मुताबिक सभी न्याय प्रकरणों के निराकरण के लिए कम से कम 2023 तक निराकरण होने की सम्भावना है