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सिंधिया की भाजपा में एंट्री से दिग्गज पशोपेश में

भोपाल। सिंधिया की भाजपा में एंट्री से कई दिग्गज नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। भाजपा में एंट्री के बाद सिंधिया अपने चहेतों को भी भाजपा में एंट्री करा रहे हैं। ऐसे में भाजपा के उन नेताओं में असंतोष फैल रहा है, जो भविष्य में होने वाले किसी न किसी चुनाव में टिकट के दावेदार हो सकते हैं, या अपनी दावेदारी कर सकते हैं। ऐसे में जो कभी कांग्रेस के झंडा थाम अपनी दावेदारी चुनावों के लिए कर रहे थे ऐसे में अब वह भाजपा का झंडा थाम अपनी अपनी दावेदारी पेश करेंगे।
भाजपा में कई सालों से अनुशासन और कैडरवेस पार्टी का पाठ पढ़ाने वाले कार्यकर्ता भी इसे लेकर पशोपेश में हैं, क्योंकि बड़े बड़े नेता तो अपनी नैया पार लगा लेंगे, लेकिन कार्यकर्ताओं की नैया कैसे पार होगी, यह चिंता उन्हें भी सताने लगी है। ऐसे में हाल ही में नगरीय निकाय के चुनाव होने हैं। ऐसे में दोनों ही दलों से कई दावेदार थे, लेकिन कई दावेदारों ने सिंधिया के साथ भाजपा का दामन थाम लिया है। ऐसे में वे अब इन निकाय चुनावों के लिए हुंकार भर रहे हैं।
इनके राजनीतिक कैरियर पर संकट के बादल
सुरेश रांठखेड़ा-प्रहलाद भारती
पोहरी विधानसभा चुनाव के दौरान सुरेश रांठखेड़ा जहां कांग्रेस का दामन थामे तो वहीं प्रहलाद भारती भाजपा का दामन थामे थे। दोनों आमने सामने प्रत्याशी थे, लेकिन सिंधिया की ताबड़तोड़ सभाओं के बाद रांठखेड़ा ने जीत हासिल की। ऐसे में रांठखेड़ा की गिनती सिंधिया के सिपहसालारों में होती है। ऐसे में यह दोनों ही नेता पोहरी विधानसभा सीट से विधायक के दावेदार हैं, क्योंकि राठखेडा ने भाजपा का दामन थाम लिया है। धाकड़ बाहुल्य इस सीट से दोनों की दावेदारी को लेकर आला नेताओं के सामने भी चुनौती होगी।
वीरेन्द्र-वैजनाथ-महेन्द्र
बात यदि कोलारस विधानसभा सीट की करें तो यहां से वर्तमान में भाजपा ने वीरेन्द्र रघुवंशी को टिकट दिया था। इसके बाद कांग्रेस ने महेन्द्र यादव को यहां से मैदान में उतारा था, लेकिन वे महज 800 वोट से हार गए थे। वीरेन्द्र रघुवंशी भी पहले सिंधिया के खास थे, लेकिन बाद में वे कांग्रेस को बाय बाय कहकर भाजपा में शामिल हुए। ऐसे में इन दोनों के बीच गणित उलझेगा तो वहीं यहां से अब कद्दावर नेता बैजनाथ यादव के भी मैदान में उतरने के आसार रहेगें। बैजनाथ सहित महेन्द्र ने अब सिंधिया के साथ भाजपा का दामन थाम लिया है। अन्य नेताओं ने भी भाजपा दामन थाम लिया है। ऐसे में यहां से भाजपा के दावेदारों की फेहरिस्त तो लंबी है, लेकिन कांग्रेस के दावेदार कम ही नजर आ रहे हैं।
जसमंत जाटव और रमेश खटीक
जसमंत जाटव को कांग्रेस ने करैरा से आजमाया था और उन्होंने यहां भाजपा के राजकुमार खटीक को शिकस्त दी थी। ऐसे में अब पूर्व विधायक रमेश खटीक ने भी भाजपा से बगावत कर चुनाव लड़ा था लेकिन कुछ दिन बाद ही उनकी भाजपा में वापसी हो गई। ऐसे में अब भाजपा की ओर से जसमंत जाटव, राजकुमार खटीक सहित रमेश खटीक भी करैरा सीट से दावेदार हैं। ऐसे में कांग्रेस से पूर्व विधायक रही शकुंतला खटीक ने अपना रुख अब तक स्पष्ट नहीं किया है कि वे सिंधिया के साथ जाएंगी या फिर कांग्रेस का ही दामन थामें रहेंगी।
नगरीय निकाय चुनावों पर होगा असर
कांग्रेस को 18 साल से इलाके में मजबूत करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा का दामन थामने के बाद इसका असर आने वाले नगरीय चुनावों पर भी असर पड़ेगा। शिवपुरी नगरपालिका, पिछोर, खनियांधाना, कोलारस और बदरवास सहित नरवर नगर परिषदों पर कांग्रेस का कब्जा था जबकि बैराड़ और करैरा नगर परिषद भाजपा के खाते में थी। ऐसे में सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद अब नगर पालिका और नगर परिषद के आगामी दिनों में होने वाले चुनावों में कांग्रेस को कही न कहीं खामियाजा उठाना पड़ेगा।
निकाय चुनावों में भाजपा में होगी टिकट के लिए घमासान
निकाय चुनावों में सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के सामने होगी क्योंकि यहां सिंधिया से जुड़े नेता जहां टिकट के लिए दावेदारी पेश करेंगे तो वहीं भाजपा मे सालों से काम कर रहे नेता भी नगरीय चुनाव में अपना भाग्य आजमाएगें। ऐसे में टिकट को लेकर दावेदारों की बड़ी फौज भाजपा में खड़ी हैं। ऐसे में नेताओं के सामने भी निकाय चुनावों में टिकट वितरण को लेकर चुनौती का सामना करना पड़ेगा।

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