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उत्तराखंड / केदारनाथ मंदिर के कपाट खुले, कल से बद्रीनाथ के भी दर्शन होंगे

  • ७ मई को खुले थे गंगोत्री-यमनोत्री के कपाट, चार धाम यात्रा शुरू
  • अक्टूबर-नवंबर में ६ महीने के लिए बंद हो जाते हैं गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट
    देहरादून. केदारनाथ मंदिर के कपाट गुरुवार को खुल गए। कपाट खुलने के पहले ही सैकड़ों तीर्थयात्री वहां मौजूद थे। ७ मई को गंगोत्री और यमनोत्री के कपाट खुलने के साथ ही चार धाम यात्रा शुरू हो चुकी है। यह छह महीने चलेगी। कल (१० मई को) बद्रीनाथ के कपाट खुलेंगे। इन मंदिरों के कपाट हर साल अक्टूबर-नवंबर में ६ महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैं, जो अप्रैल-मई में फिर खुलते हैं। इस बार भारी हिमपात से यात्रा मार्ग पर काफी बर्फ है।
    उत्तराखंड के चारधाम और उनका महत्व
    उत्तराखंड में हर साल गर्मियों में चारधाम यात्रा होती है। इन चारों स्थलों (गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ) को पवित्र माना जाता है। गंगा नदी का उद्गम गंगोत्री और यमुना नदी का उद्गम यमुनोत्री दोनों उत्तरकाशी जिले में हैं। वहीं बद्री विशाल (भगवान विष्णु) का पवित्र स्थल बद्रीनाथ धाम चमोली और भगवान शिव का पवित्र धाम केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है।

स्कंद पुराण के अनुसार, गढ़वाल को केदारखंड कहा गया है। केदारनाथ का वर्णन महाभारत में भी है। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के यहां पूजा करने की बातें सामने आती हैं। माना जाता है कि ८वीं-९वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर बनवाया गया था। बद्रीनाथ मंदिर के बारे में भी स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है। बद्रीनाथ मंदिर के वैदिक काल (१७५०-५०० ईसा पूर्व) भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में वर्णन है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, यहां भी ८वीं सदी के बाद आदि शंकराचार्य ने मंदिर बनवाया।

पुराणों के अनुसार, राजा भगीरथ गंगा को धरती पर लाए थे, लेकिन गंगोत्री को ही मां गंगा का उद्गम स्थान माना जाता है। गंगा के मंदिर के बारे में बताया जाता है कि गोरखा (नेपाली) ने १७९० से १८१५ तक कुमाऊं-गढ़वाल पर शासन किया था, इसी दौरान गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने गंगोत्री मंदिर बनवाया। बताया जाता है कि टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने १९१९ में यमनोत्री मंदिर बनवाया था, लेकिन भूकंप से यह नष्ट हो गया। इसके बाद मंदिर का पुनर्निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने १९वीं सदी में करवाया। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत बर्फ की एक झील और हिमनद (चंपासर ग्लेशियर) है।

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