20 साल पहले आए सुपर साइक्लोन में 10 हजार लोग मारे गए थे
फैनी से निपटने के लिए 300 हाईपावर सुपरबोट तैनात की गईं थीं
मौसम वैज्ञानिकों ने तूफान के असर को समझ लिया था, आपदा प्रबंधन में आईआईटी की भी मदद ली गई
भुवनेश्वर. चक्रवाती तूफान फैनी का ओडिशा के तटीय क्षेत्रों से निकलकर और कमजोर पड़कर बांग्लादेश की तरफ बढ़ चुका है। ओडिशा में इसके चलते 12 लोग मारे गए। 20 साल पहले यानी 1999 में इसी तरह का सुपर साइक्लोन ओडिशा से टकराया था। तब करीब 10 हजार लोग इस आपदा का शिकार बने थे। इस बार क्षति इसलिए कम हुई क्योंकि राज्य और केंद्र सरकार को काफी पहले तूफान की जानकारी मिल चुकी थी। किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने की पूरी तैयारी युद्धस्तर पर की गई थी। इस बार 12 लाख लोगों को बचाया गया। 26 लाख लोगों को मैसेज कर तमाम जानकारियां दी गईं। इसके अलावा 43 हजार कर्मचारियों और वॉलंटियर्स को हालात से निपटने के लिए तैनात किया गया था।
हर महकमा मुस्तैद
ओडिशा और केंद्र सरकार के तमाम संबंधित विभाग फैनी से निपटने के लिए तैयार थे। करीब 10 लाख लोगों पर इसका असर होता। आपदा प्रबंधन के 1 हजार प्रशिक्षित कर्मचारी खतरे की आशंका वाली जगहों पर भेजे गए। 300 हाईपावर बोट हर पल तैनात रहीं। टीवी, कोस्टल साइरन और पुलिस के अलावा हर उस साधन का उपयोग किया गया जो आमजन की सुरक्षा के लिए जरूरी था। इसके लिए उड़िया भाषा का ही इस्तेमाल किया गया। संदेश साफ था- तूफान आ रहा है, शिविरों में शरण लें।
बहुत बड़ी कामयाबी
अमेरिकी मीडिया भी मान रहा है कि भारत ने एक बहुत बड़ी आपदा का सामना पूरी सफलता से किया। इसके लिए सही रणनीति अपनाई गई, उपयुक्त और आधुनिक संसाधनों का इस्तेमाल किया गया। यही वजह है कि करीब 10 लाख लोगों को सुरक्षित रखा जा सका। ओडिशा और केंद्र सरकार ने मिलकर काफी पहले से इसकी तैयारी की थी। 1999 के बाद से ही ओडिशा में हजारों शेल्टर होम बनाए गए थे। मौसम विभाग के चार सेंटर तूफान की हर हरकत पर न सिर्फ पैनी नजर रख रहे थे बल्कि उसके हिसाब से अपनी योजना भी तैयार कर रहे थे।
तकनीक की मदद
आपदा प्रबंधन में देश के कुछ खास तकनीकी संस्थानों की मदद ली गई। इनमें आईआईटी खड़गपुर का नाम अहम है। मौसम विभाग के वैज्ञानिकों ने समझ लिया था कि बंगाल की खाड़ी के गरम पानी से तूफान का असर ज्यादा होगा। लिहाजा, तैयारियों का स्तर बेहतर रखा गया। ओडिशा गरीब राज्य है। इसलिए संसाधनों का इस्तेमाल समझदारी से किया गया। एनडीआरएफ की टीमों को काफी पहले संबंधित क्षेत्रों में पहुंचा दिया गया था। मछुआरों से संपर्क कर उन्हें तमाम हिदायतें दी गईं थीं। लकड़ी की नावों को किनारों पर सुरक्षित पहुंचा दिया गया था। बुजुर्ग, बच्चों और महिलाओं को शिविरों में सबसे पहले पहुंचाया गया।
