यह खूबसूरत द्वीप कभी यहां के निवासियों के लिए स्वर्ग था। पर अब यह स्वर्ग रोज-ब-रोज उजड़ रहा है और इस स्वर्ग के निवासी इसे अपनी आंखों के सामने उजड़ते देखने के लिए मजबूर हैं।
केरल के मुनरो आइलैंड की सुंदरता किसी भी चित्रकार की कल्पना को मुंह चिढ़ा सकती है। नदी, तालाब, नारियल के बगीचे। प्रकृति ने इस जगह को दिल खोलकर उपहार दिए हैं। प्रकृति की यह अद्भुत छटा दुनिया भर से हजारों पर्यटकों को इस छोटे से द्वीप समूह पर खींच लाती है। द्वीप के चारों तरफ नौका विहार करते हुए पर्यटक बरबस ही यहां की प्राकृतिक सुंदरता के सम्मोहन में खो जाते हैं। इस क्षेत्र क बाहर के लोग शायद ही यह देख पाते हैं कि सुंदरता के इस पर्दे के पीछे विनाश की एक पटकथा भी लिखी जा रही है। दरअसल यह खूबसूरत द्वीप दिन- प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा डूब रहा है। यहां के निवासी अपने घरों को रोज डूबते हुए देखने को मजबूर हैं। और उन्हें डर है कि अगले एक डेढ़ दशक में यह पूरा द्वीप ही डूब जाएगा।
मुनरोथुरूथ रेलवे स्टेशन पर उतरते ही आपको ऐसे कई खाली घर दिखाई देते हैं जो कुछ फीट पानी में डूबे हुए हैं। मुनरोथुरूथ, मुनरो आइलैंड का मलयालम नाम है। स्टेशन से निकलकर गांव में दाखिल होते ही हमें कुछ लोग गीली काली मिट्टी के टीले बनाते हुए दिखे। हमने उनसे जानना चाहा कि वे क्या कर रहें हैं। मलयालम में हिंदी और अंग्रेजी के कुछ शब्द मिलाकर उन्होंने हमें समझाया कि वे तालाब से लाई गई मिट्टी से अपने घर के आस-पास की बेदी को ऊंचा कर रहें हैं ताकि पानी उनके घर में ना घुसे।
ये वो लोग हैं जो इस डूबते द्वीप पर अपने घरों को छोड़कर किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर जाने में असमर्थ हैं। समर्थवान परिवार पहले ही अपने घरों को त्यागकर सुरक्षित स्थानों पर बस गए हैं। इस द्वीप के निचले क्षेत्र के 200 से अधिक परिवार अपने डूबते घरों को छोड़कर कहीं और चले गए हैं। और जो यहां रह गए हैं वे रोज अपने घरों के धंस जाने या ढह जाने के डर के साथ सोते-जागते हैं।
मुनरोथुरूथ गांव या मुनरो आइलैंड केरल के कोलम शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर है। इस द्वीप का नाम ब्रिटिश अधिकारी कर्नल जॉन मुनरों के नाम पर पड़ा था जिन्होने इस क्षेत्र में नहरों के निर्माण में और बैकवॉटर मार्गो के एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह द्वीप ऐशतामुडी तालाब और कल्लादा नदी के संगम पर बसा है। द्वीप पर बन आलीशान रीजॉर्ट और होटलों में वर्ष भर पर्यटकों का जमावड़ा रहता है। पर यहां का मुख्य आकर्षण ओणम त्योहार के दौरान 10 दिन तक कल्लादा नदी में 10 दिन तक चलने वाली नौका रेस होती है।
यहां के निवासी बताते हैं कि दो दशक पहले यह जगह बेहद खुशहाल हुआ करती थी। लोग बेखौफ होकर अपने घरों और घर के बाहर बगीचों में सोया करते थे। धान की यहां भरपूर खेती होती थी। पर अब उन्हें कभी भी घर में पानी घुस आने का डर सताता रहता है। नमकीन पानी के खेतों में फैल आने के कारण अब खेत की जमीन खारी हऔर बंजर हो चली है। खारे पानी में डूबे रहने के कारण नारियल के पेड़ अब बीमार से दिखते हैं। अधिकांश नारियल के पेड़ों पर अब फल नहीं आते और अब तो इन पेड़ों के पत्ते भी सूखने लगे हैं।
