नई दिल्ली : भारतीय रेलवे ने सभी रेलगाडिय़ों में बॉयोटॉयलेट लगाने की समय सीमा 2022 से घटा कर दिसंबर 2018 कर दी है तथा बॉयोटॉयलेट से आगे बॉयो वैक्यूम टॉयलेट लाने की भी तैयारी शुरू कर दी है. रेलवे बोर्ड के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि भारतीय रेलवे को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के पहले खुले पाइप वाले शौच से मुक्त कर दिया जाएगा. सूत्रों ने बताया कि चालू वित्त वर्ष में 12500 कोचों में बॉयो टॉयलेट लगाने के बाद 20 हजार कोच बचेंगे जिनमें 80 हजार बॉयोटॉयलेट लगाने होंगे.
ये काम दिसंबर 2018 तक पूरा करने का नया लक्ष्य तय किया गया है. इसके लिए कंपनियों की उत्पादन क्षमता भी विकसित हो चुकी है. उन्होंने कहा कि किसी भी हाल में मार्च 2019 तक भारतीय रेलवे को खुले पाइप वाले शौचालयों से मुक्त कर दिया जाएगा. सूत्रों ने कहा कि रेलवे को बॉयो टॉयलेट में पानी की कमी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है. इसी कारण से यात्रियों को अक्सर बोतल ले जाने की जरूरत महसूस होती है.
इसके समाधान के लिए हेल्थ फॉसिट यानी पाइप एवं जेटप्रेशर लगाया जा रहा है ताकि शौच के वक्त पानी के लिये बोतल की जरूरत नहीं पड़े. उन्होंने कहा कि रेलवे ने बॉयोटॉयलेट की अलावा विमानों में लगने वाले वैक्यूम शौचालयों की तकनीक जोड़ कर देश में विकसित हाइब्रिड तकनीक का विकास किया है. इसमें वैक्यूम तकनीक आयातित तकनीक है जो काफी महंगी है. आमतौर पर एक बॉयो टॉयलेट की कीमत एक लाख रुपए आती है जबकि बॉयो वैक्यूम हाइब्रिड टॉयलेट की कीमत करीब ढाई लाख रुपए होगी.
उल्लेखनीय है कि बॉयो टॉयलेट को लेकर संसद में कल पेश नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में रेलवे की आलोचना की गयी है. ऐसे शौचालयों में बदबू आने, बोतलों एवं अन्य वस्तुओं को अंदर डाल देने आदि का उल्लेख करते हुए बॉयो टॉयलेट के कुप्रबंधन की बात कही गई है. इस बारे में सूत्रों ने बताया कि रेलवे के सभी कोचिंग डिपो में एक बॉयो टॉयलेट प्रयोगशाला भी बनाई गई है.
जहां सभी रैकों में बॉयो टॉयलेट के डिस्चार्ज की जांच की जाती है और अगर बैक्टीरिया का स्तर कम पाया जाता है तो उसमें फिलिंग की जाती है. इसी प्रकार हर बॉयोटॉयलेट में मार्च तक डस्टबिन लगाया जाएगा जिसमें बोतल आदि फेंकी जा सके. इसके साथ यात्रियों में जागरूकता बढ़ाने का भी अभियान चलाया जाएगा.
सूत्रों ने कहा कि कैग की रिपोर्ट में रेलवे की चूक कम और क्या करना है इसकी सिफारिशें ज्य़ादा बतायीं गयीं हैं और रेलवे उन पर काम करने के लिये तैयार है. उन्होंने कहा कि बॉयो टॉयलेट की प्रणाली 2010 में लायी गयी है. एक नयी व्यवस्था के लागू करने पर कुछ समस्याएं होतीं हैं लेकिन उन्हें दुरुस्त किया जाएगा.
