समय दर्शन:- रायपुर . दूसरे चरण की 72 सीटाें में कुछ ऐसी भी हैं, जिन पर चुनाव घोषित होने के पहले से पूरे प्रदेश की नजर है। तो कुछ दलों के टिकट फाइनल के बाद एकाएक खुर्सियों में आ गईं। कोटा में कांग्रेस से ही तीन बार की विधायक रहीं रेणु जोगी की उलझन इस बार कांग्रेस के विभाेर सिंह और भाजपा के काशी साहू ने बढ़ा दी है। खरसिया में पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी ने कांग्रेस की परंपरागत इस सीट को टक्कर में खड़ा किया है। उनके सामने कांग्रेस से उमेश पटेल हैं। इधर, दुर्ग ग्रामीण में दो साहुओं के बीच रोचक मुकाबला है।
जोगी की साख, कांग्रेस का इतिहास दांव पर, भाजपा के लिए मौका
कोटा का चुनाव इसलिए सबसे रोचक है, क्योंकि पहली बार अलग पार्टी बनाकर लड़ रहे जोगी की साख का सवाल है। कांग्रेस के सामने जीत का इतिहास बरकरार रखने की चुनौती है तो भाजपा के सामने जीतकर रिकॉर्ड बनाने का मौका। हम ग्राउंड पर पहुंचे। एक युवक ने कुछ यूं गणित समझाया हमें। देखिए… कांग्रेस से रेणु जोगी को पिछली बार 55,300 वोट मिले थे। भाजपा के काशी साहू को 53,300 वोट। यानी कुल 5000 वोट से जीती थी कांग्रेस। अब रेणु जोगी जनता कांग्रेस से हैं। कांग्रेस से नया चेहरा विभोर सिंह हैं। मान लें कि जोगी को खुद के कोटे से 10 हजार वोट मिले होंगे और बाकी कांग्रेस कोटे से। तब भी कांग्रेस के वोट तो 45 हजार बचे। जबकि काशी और बीजेपी तो वही है। इसलिए माहौल भाजपा के पक्ष में है…। तभी वहां मौजूद एक बुजुर्ग बोले, ऐसा कुछ नहीं है। गांवों में लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं। वे तो सिर्फ पंजा को वोट देते हैं। उनके लिए तो आज भी इंदिरा गांधी ही प्रधानमंत्री हैं। तभी तो आजादी के बाद से यहां कांग्रेस कभी नहीं हारी।
शहर से लेकर गांवों तक… मुकाबला टक्कर का : एक गांव में पहुंचे। यहां बैठे कुछ लोगों जैसे ही छेड़ा- बोले, हमारे यहां तो सब साहब (अजीत जोगी को वे इसी नाम से बुलाते हैं) को ही जानते हैं। और मैडम…? इस पर बोले- हां, वे भी तो जोगी ही हैं। यही कोटा सीट है… सभी जानते हैं कि मुकाबला कड़ा है। एक और खासियत ये कि यहां ऐसे लोग भी मिल जाएंगे, जो पंजे पर वोट डालकर इंदिरा गांधी को याद कर लेते हैं। या ऐसे लोग जो पंजा पर वोट डालकर या साहब (जोगी) को जितवाने का दावा करें। कांग्रेस की सीट ऐसे ही नहीं कहते इसे। पिछली बार 71.50 फीसदी वोट पड़े थे। नए वोट किसे मिलेंगे? बस, इसी सवाल में जीत का अंक छिपा है।
