वैश्विक व्यापार के नज़रिए से आज ज़रूरत है कि विकासशील और विकसित देशों के बीच बदलते परिवेश के लिहाज से एक व्यापक नज़रिया अपनाया जाए. वार्ता की बाधाएं लगातार अपना स्वरूप बदल रही हैं, ऐसे में वक्त की ज़रूरत लचीले रुख की मांग करती है. मंगलवार को दिल्ली में संपन्न विश्व व्यापार संगठन की अनौपचारिक बैठक में चर्चा इन मामलों के अलावा कई मुद्दों पर बेहद अहम रही.
वैश्विक कारोबार में बढ़ते संरक्षणवाद के बीच मंगलवार को विश्व व्यापार संगठन डब्ल्यूटीओ की औपचारिक बैठक खत्म हो गई. बैठक में अमेरिका और चीन सहित 52 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे थे. बैठक में शामिल प्रतिनिधियों में 27 देशों के मंत्री और उप-मंत्री भी शामिल रहे. बैठक की मुख्य भावना यही रही कि कैसे बहुपक्षीय व्यापार और संरक्षणवाद के बीच रास्ता बनाया जाए. हालांकि ये सभी पक्षों ने माना कि कई मुद्दे हैं जिस पर जल्द से जल्द हल निकालना होगा.
बैठक का एक मुद्दा वैश्विक व्यापार में संरक्षणवाद को लेकर चिंता थी, जिसमें अमेरिका के इस्पात और एल्युमिनियम पर लगाए गए नया शुल्क जैसे मुद्दे भी थे. वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु ने विश्व व्यापर संगठन डब्ल्यूटीओ के सदस्यों से बहुपक्षीय व्यापार निकाय को मजबूत करने के लिए साझा ज़मीन की बनाने की अपील की. डब्ल्यूटीओ के महानिदेशक ने भी उम्मीद जताई कि अपने पुराने मुद्दों को छोड़कर सारे देश ज्यादा लचीला रुख अपनाएंगे.
बैठक इस संगठन को पुनर्जीवित करने के विकल्प तलाशने के लिए भी अहम रही. क्योंकि आज पूरा विश्व और डब्ल्यूटीओ विभिन्न प्रणालीगत मुद्दों का सामना कर रहा है, जिसमें अमीर देश समूह बनाकर निवेश सुविधा, ई-कॉमर्स के लिए नियम बनाने, स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ावा और मत्स्य पालन पर सब्सिडी घटाने जैसे नए मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए ज़मीन तैयार करना भी शामिल था, वहीं भारत जैसे देशों की चिंता कृषि सब्सिडी जैसे मुद्दों पर विकासशील देशों के मुद्दों को संरक्षित करने का भी रहा. प्रधानमंत्री के साथ वार्ता में तमाम मुद्दों को ध्यान में रखते हुए पीएम ने आह्वान किया कि ज़रूरत है एक व्यापक नज़रिए की, ख़ासकर विकासशील देशों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए.
डब्ल्यूटीओ की वार्ता में अब वक्त एक कॉमन ग्राउंड को तलाशने का है, जहां अमेरिका और चीन जैसे देशों की बढ़ती भूमिका को नए सिरे से समायोजित करना है तो विकासशील देशों की बढ़ती आकांक्षाएं भी समय की ज़रूरत है.
